इष्ट देव सांकृत्यायन
बेचारा सेंसेक्स! जब देखिए तब औंधे मुंह गिर जाता है. एक बार बढ़ना शुरू हुआ था पिछले साल. ऐसा दौडा, ऐसा दौडा... कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. उस वक्त तो ब्लू लाइन और डीटीसी की बसें भी फेल हो गईं थीं इसके आगे. लग रहा था जैसे ब्रेक ही फेल हो गया हो. कोई रोकना चाहेगा भी तो शायद न रुके. यह जानते हुए भी कि ब्रेक फेल हो जाने के बाद किसी गाडी का क्या हाल होता है हमारे जैसे तमाम नौसिखिये बाबू लोग भी पहले निवेशक बने, फ़िर मौका ताक कर ट्रेडरगिरी की ओर सरकने लगे थे. तब तक तो अईसा झटका लगा जिया में कि पुनर्जन्मे होई गवा.
जब यहाँ सेंसेक्स बढ़ रहा था, तब दुनिया भर का बाजार गिर रहा था. अमेरिका से लेकर चीन तक सब परेशान थे. तब इहाँ के एक्सपर्ट लोग इसके गिरने का कौनो अंदाजा नहीं लगा रहे थे. सबको यही लग रहा था कि बस बढ़ रहा है और बढ़ता ही जाएगा. चढ़ रहा है और चढ़ता ही जाएगा। 16 हजार था, 18 हजार हुआ, फ़िर 20 हजार हुआ, फ़िर 22 हजार हुआ. भाई लोगों को लगा कि अब ई का रुकेगा. अब तो बस बढ़ता ही चला जाएगा. 24 हजार होगा, फ़िर 26 हजार होगा. चढ़ता ही जाएगा सर एडमंड हिलेरी की तरह. एकदम एवारेस्ते पे जा के दम लेगा. अपने अगदम-बगादम वाले आलोक पुराणिक भी लगातार यही बताते रहे कि हे वाले फंड में लगाइए, हीई वाली इक्विटी में लगाइये. ई इतना बढ़ा है तो इतना बढेगा. ऊ इतना बढ़ा है तो इतना बढेगा. एक्को बार ई नहीं बताए कि गिरेगा तो का होगा. आपका हाथ-गोद कुछ बचेगा कि नहीं.सारे लोग यही बोल रहे थे भारत का बाजार बाहर के बाजार से बिल्कुल नहीं इफेक्तेद है. ई हमारी अर्थव्यवस्था के प्रगतिशील होने का संकेत है. आख़िर प्रगतिशील गठबंधन के नेतृत्व में देश चल रहा है. कोई ऎसी-वैसी बात थोड़े है!
लेकिन साब एक दिन ऐसा भी आया जब ऊ अचानक गिरने लगा. यह काम उसने बिन बताए किया. चुपचाप. जैसे पुराने जमाने में लड़की-लड़का मान-बाप की इच्छा के खिलाफ होने पर घर से भाग के शादी कर लेते थे. जब एक्के दिन में गिर के ऊ बीस हजार पे आ गया, तब लोगों को लगा कि अरे ई का हो गया ? कहाँ तो हम सोचे थे तीस हजारी होने को और कहाँ ......... खैर! तब भी कुछ लोग घबराए नहीं. मान के चल रहे थे कि सुधर जाएगा. कुछ मजे खिलाडी भी लोग तो उस दौर में खरीदी में जुट गए. सोचे सस्ता माल है, खरीद लो जितना ख़रीदते बने. लगे गाने ऐसा मौका फ़िर कहाँ मिलेगा .........
लेकिन सचमुच ऊ बहुत बढ़िया मौका साबित हुआ. ऐसा कि जैसे चाईनीज माल की दुकानें होती हैं. लगातार सेल, महासेल. पहले कहती हैं ऑफर स्टाक रहने तक. लेकिन उनका स्टाक कभी ख़त्म नहीं होता. बढ़ता ही चला जाता है. तो साहब यह भी सेल का महासेल लगा के बैठ गए. तमाम शेयरों का दाम तो लगातार गिरता ही चला गया. ऐसे जैसे इमरजेंसी के बाद भारतीय राजनेताओं का चरित्र गिरता चला गया. अब राजनेताओं और विश्लेषकों को ये नहीं सूझ रहा है कि क्या जवाब दें? असलियत बता दें कि ऐसे-वैसे कुछ कह दें. कुछ नहीं सूझा तो बेचारे यही कहे जा रहे हैं कि- हे जी जब पूरी दुनिया में गिर रहा है तो एक ठु हमारे कैसे बचेगा? ई गलोबल असर है जी!
सलाहू बोल रहा है कि कहीं ऐसा न हो कि निवेशक सब सरकार पर दबाव बनाने लगे. फ़िर ऊ निवेशकों को भी सब्सीडी देने लगे. आख़िर अईएमेफ़ की मनाही तो किसानों को सब्सीडी देने पर है न! शेयर बाजार के लिए थोड़े ही है. यह भी हो सकता है कि जिन लोगों ने कर्ज लेकर निवेश किया है उनके कर्जे पूरे माफ़ कर दिए जाएँ. उप्पर से सरकार कहे कि लो हम और कर्ज दिए देते हैं तुमको. बाद में इहो माफ़ कर देंगे. ई अलग बात है इसको माफ़ करने की नौबत तब आएगी, जब तुम अगले पाँच साल बाद महंगाई की मार झेलने के बाद भी बच सकोगे.
मुझे भी लग रहा है कि सरकार जल्दी ही ऐसा कुछ करेगी. क्योंकि चुनाव का समय नजदीक है और ऐसे समय में कौनो सरकार किसी को नाराज नहीं रख सकती. मैं भी सोच रहा हूँ, ले लिया जाए. वैसे भी लोकतंत्र का उद्गम तो वहीं है .... यावाज्जीवेत सुखाज्जीवेत ....
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