Friday, February 15, 2008

आखिर कौन हूँ मैं

आखिर कौन हूँ मैं.....
अस्तित्व को तलाशता
एक नारीत्व
या नारीत्व में खोया
एक अस्तित्व
आखिर कौन हूँ मैं.....
दुनिया की भीड़ में
रौंदा गया एक व्यक्तित्व
या तिनको में समाया
एक अस्तित्व
आखिर कौन हूँ मैं....
हर कदम हर डगर
गिर के सँभालने का सफर
आँधियों के बीच
ज़र्रों से बना एक घर
आखिर कौन हूँ मैं...
सुकून की चाह में
खुशियों की रह में
लड़ रही जिंदगी का समर
आखिर कौन हूँ मैं.....
हौंसलों की पतवार से
पार कर पाऊँगी क्या
तूफानों का ये सफर
आखिर कौन हूँ मैं...
प्रतीक्षा सक्सेना

2 comments:

Vikash said...

दुनिया की भीड़ में
रौंदा गया एक व्यक्तित्व
या तिनको में समाया
एक अस्तित्व
आखिर कौन हूँ मैं.

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है. :)

anu said...

heart rendering poem reached to my heart.