Monday, February 4, 2008

बचपन में ही तय हो जाता है मनो-व्यक्तित्व

प्रतीक्षा सक्सेना
इन् दिनों मानसिक तनाव कि बातें सबसे आम चर्चा बन चुकी हैं। लोग अक्सर कहते हैं कि रोज़मर्रा कि परेशानियाँ ही उन्हें तनाव दे रही हैं, लेकिन वास्तव मैं ऐसा नही है। मनोवाज्ञानिक नज़रिये से देखें तो तनाव किसी पर्यावरण पर उतना निर्भर नही करता जितना कि उस व्यक्तिविशेष पर जो किसी भी कारन से तनाव में है। विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी पेर्सोनालिटी का निर्धारण तो उसके बचपन मई ही हो जाता है। ऐसे में यदि बचपन से ही ध्यान दिया जाये तो उस बच्चे को काफी हद तक स्ट्रेस से निकाला जा सकता हैं
दरअसल परेशानियाँ तो सभी कि जिंदगी में आती हैं लेकिन कई लोग ऐसे भी होते हैं जो बड़ी से बड़ी मुश्किल में भी अपने चेहरे पर शिकन नही आने देते वही कोई इंसान ऐसा होता है जो ज़रा सी मुसिबात में ही जिंदगी से पलायन के बारें में सोचने लगते हैं। ऐसे ही लोग एक दिन या तो सुसाईड का रास्ता पकड़ लेते हैं या हर समय अपनी ही परेशानियों का रोना रोते हैं। ऐसे में यदि बचपन में थोडा बहुत ध्यान परवरिश पर दे दिया जाये तो एक ऐसे शख्सियत तैयार हो सकती है जो न सिर्फ बुढापे में आपका सहारा बन सकेगा बल्कि अपने आसपास के लोगो को भी प्रेरणा दे सकता है।
एक नज़र में जानते हैं ऐसे ही कुछ बचपन जो बता सकता है कि आपका नन्हा मुन्ना आगे चलकर किस तरह कि शख्सियत बनेगा:
ऐसा बच्चा जो बहुत शांत स्वभाव का है लेकिन थोडी देर के लिए भी अपनी माँ से अलग होते ही रोना शुरू कर देता है
इस तरह के बच्चे आगे चलकर उतावले किस्म के हो जाते हैं और जीवन में ज़रा सा भी बदलाव बर्दाश्त नही कर पते। ऐसे बच्चों में अपनी चीजों को लेकर कुछ ज्यादा ही आसक्ति हो सकती है जो कई बार परेशानी का सबब भी बन जाती hai
ऐसा बच्चा जो अपने आप मई मस्त रहता है और अकेला ही खेलता रहता है
इस तरह के बच्चे आगे चलकर भी मस्त मौला तरह के होते हैं और मुश्किल वक़्त में जुझारू प्रवृत्ति का परिचय देते हैं। ऐसे पेर्सोनालिटी एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में उभर सकती है।
ऐसा बच्चा जो काफी चिर्चिदा हो और अलग थलग ही रहता हो
इस तरह के बच्चे अंतर्मुखी स्वभाब के होते हैं। मसलन वो आसानी से किसी से घुलते मिलते नही है। उनके इसी स्वभाव के कारन ही उन्हें कई बार अकेलापन इस कदर महसूस होने लगता है कि वह जिंदगी से ही दूर भागने लगते हैं।

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